तुम मेरे नहीं हो सकते ये मैं जानता हूँ।
मैं जानता हूँ तुम मेरे नहीं हो सकते।
मगर क्या कभी काँटों ने फूलों की तरह नहीं खिलना चाहा?
क्या कभी लहरों ने किनारों की तरह नहीं मिलना चाहा?
क्या कभी आग को प्यास नहीं लगी
या फिर मरने वाले को जीने की आस नहीं लगी?
क्या कभी ख़ुशी में आँसू नहीं आते
या राही कभी मंज़िल नहीं पाते?
ऐसा अगर नहीं होता तो मैं, मैं ये आज कहता हूँ कि
मैं काँटा हूँ तुम्हें पाकर खिल जाना चाहता हूँ,
मैं किनारा हूँ तुमसे मिल जाना चाहता हूँ।
मैं आग हूँ मुझे तुम्हारे प्यार की प्यास है।
मैं मर रहा हूँ मुझे तुम्हारे आने की आस है।
मैं आँसू हूँ तुम मेरी ख़ुशी हो।
मैं राही हूँ तुम मेरी मंज़िल हो।
मैं जो कुछ भी हूँ या कुछ भी नहीं हूँ,
तुम हो तो हूँ, नहीं हो तो नहीं हूँ…
तुम मेरे नहीं हो सकते ये मैं जानता हूँ।
मैं जानता हूँ तुम मेरे नहीं हो सकते।