जीवन जीने की कला ही जाच है। इसमें सुख-दु:ख, जय-पराजय और लाभ-हानी समान चलते हैं।
भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा है- ‘सुखदु:खे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ’।
वाल्मीकि रामायण में लिखा है- ‘दुर्लभं हि सदा सुखम्’।
महाकवि गोस्वामी तुलसीदासजी ने लिखा है-
तुलसी इस संसार में, सुख दु:ख दोनों होय।
ज्ञानी काटे ज्ञान से, मूरख काटे रोय।।
Some points that will benefit you:
- आस्तिक बनें (Be Theist)- ईश्वर पर भरोसा आवश्यक है। ‘ईश्वर जो कुछ करता है – अच्छा ही करता है’। श्रद्धापूर्वक की गयी प्रार्थना कभी निष्फल नहीं जाती। दिन का प्रारम्भ प्रार्थना से करें और अन्त भी प्रार्थना से करें।
- माता-पिता की सेवा (Serving Parents)- माता-पिता को प्रत्यक्ष देव व तीर्थ माना गया है। आयु, विद्या, यश और बल उनके आशीर्वाद से बढ़ते हैं। श्रीरामचरितमानस की शिक्षा है-
सुनु जननी सोइ सुतु बड़भागी। जो पितु मातु बचन अनुरागी।।
मनुस्मृति कहती है- अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविन:।
चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशो बलम्।। - सुख दो, सुख मिलता है (Give and Take are Reciprocal)- दूसरों को प्रसन्नता, सुख और प्रेम देनेपर ही सुख की प्राप्ति होती है। ‘जो दोगे वही तो मिलेगा’ और ‘जैसा बोओगे वैसा काटोगे’ ।
संत तुलसी ने लिखा है- चार वेद षट् शास्त्र में बात मिली हैं दोय।
सुख दीन्हे सुख होत है दु:ख दीन्हे दु:ख होय।। - सदैव सन्तुष्ट रहना (Be Content)- सन्तोष सुख और असन्तोष दुख है। ‘सन्तोष: परमं सुखम्’ । ‘अशान्तस्य कुत: सुखम्’ ? परिश्रम और पुरुषार्थ से सुख मिलता है। अशान्ति भाग जाती है।
- धैर्य रखें (Keep Patience) – धैर्य रखने से कठिन समस्यायों का समाधान होता है और परिस्थितियाँ भी अनुकुल हो जाती हैं। हितोपदेश में लिखा है- ‘विपदि धैर्यम्’ ।