आप में से बहुत से लोग फव्वारे के स्थान पर बाल्टी में पानी भर कर नहाते होंगे। गाँव में बचपन में हमें भी यही आदत है। आधुनिक साधन होने के उपरान्त भी, हम चूल्हे पर पानी गर्म करना पसंद करते हैं और बाल्टी में पानी भर कर नहाते हैं—थोड़ा गर्म और ठंडा पानी मिलाने के बाद (तापमान देखने के लिए कई बार हाथ जला है!)
पुराने दौर से ही, पिता जी को बाल्टी धो कर पानी भरने की आदत है। मैं बचपन से ही ऐसा करने से टलता हूँ। आलस व पानी की बचत करने का बहाना लगाकर, बाल्टी उठा के ऐसे ही पानी भर लेता हूँ।
अब मैं चाली वर्ष का हूँ और घर में रंग की पुताई चल रही है। स्नानघर में रंग पोतने वालों के काम करने के बाद बहुत सी मिट्टी बाल्टी में भी गिर गई थी। अगली सुबह जब मैंने वो बाल्टी उठाई, तो आदत अनुसार उसे धोया नहीं।
चूल्हे पर से गर्म पानी का पतीला उठाकर ऐसा ही बाल्टी में उलटा दिया तो देखा कि सारी मिट्टी पानी में घुल गई और पानी गंदा हो गया। पानी गिरा भी नहीं सकता था पर ऐसे ही गंदे पानी से नहाया क्योंकि यदि पिता जी को बताता तो वे बोलते कि तू मेरी बात कभी नहीं मानता—उनको भी दुख होता और मेरा मन भी आहत होता।
उस दिन मुझे व्यवहारिक अनुभव हुआ कि बाल्टी का प्रयोग करने से पहले उसे एक बार साफ कर लेना क्यों आवश्यक है।
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