100 वर्ष तक जीने की कामना करें।
इसके लिये निरोगी काया का सुख आवश्यक है।
स्वस्थ जीवन के लिये कुछ सावधानियों का पालन आवश्यक है।
- आहार – आयु, तेज, उत्साह, स्मृति, जीवन-शक्ति तथा शरीर-शक्ति की वृध्दि आहार से ही होती है। मिर्च-मसाला, ऊपरी नमक, खटाई, अचार, चीनी, तेल आदि का न खाना जिह्वा नियन्त्रण (आस्वादव्रत) है। गरिष्ठ भोजन भी कम मात्रा में चबाकर करना चाहीए। मद्ध-मांसादि तो मना ही है।
- उपवास – शरद् और वसन्त ऋतु के समय चार्तुमास्य (शरद् और वसन्त ऋतु का संगम) में व्रत करने से शरीर निरोग रखा जा सकता है। एकादशी के व्रत से भी लम्बी आयु प्राप्त होती है।
- निद्रा (पूर्ण विश्राम) – रोगोंकी शान्ति नींद से होती है। निद्रा सुख, दुःख, पुष्टि, कृशता, बल और अबल को अपने अधीन कर लेती है।
- ब्रह्मचर्य (संयम) -शरीर में पूर्णरूपेण विकास जनम से पच्चीस वर्ष तक होता है। इस समय रस-रक्तादि धातुयें पुष्ट होती रहती हैं।
- सदाचारयुक्त्त जीवन – शरीरक बीमारीओं से बचने के लिये अवसाद, कुण्ठा, निराशा, हताशा, भय, क्रोध, राग-द्वेष, लोभ, मोह एवं अहंकार से बचना चाहीए। लम्बी आयु के लिय रूग्ण व्यक्त्तियों की सेवा, भूखे को भोजन, गाय को घास, वृद्धों की सेवा, सत्य बोलना, क्रोध न करना, मद्धपान और विषय-भोगों से दूरी, प्रिय बोल, शान्त रहना, पवित्र रहना, अहिंसा पालन करना आवश्यक है।
- नशामुक्त्त जीवन – दिल, शुगर और कैंसर की बीमारी त्मबाकू खाकर बड़ती है। मनुष्य मानसिक रोग (पागलपन) का शिकार होता है गाँजा, भाँग और नशेकी गोलियाँ खाकर। नशा अल्पायु को जन्म देता है।
- प्रातः-भ्रमण, आसन और प्रणायाम – रक्त्त शुद्धि के लिये प्रातः-भ्रमण, शरीर की नाड़ियाँ सक्रिय एवं सुव्यवस्थित रखने के लिये आसन, प्राणायाम के लिये एक घण्टे का समय देना ही पडेगा।
- प्रसन्नता – सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त करने के लिये प्रसन्नता आवश्यक है। इस से क्रोध, घृणा, राग, द्वेष, भय, लोभ, मोह का त्याग होता है।
- भगवन्नाम का जप – दवा और ईश्वर-आराधना रोगोंसे छुटकारा पानेके उपाय हैं। प्रारब्ध की बाधायें कट जाती हैं। दवा फेल और दुआ पास हो जाती है।
प्रयास करने से प्रगती (Development) और प्राप्ती (Achievement) दोनो होते हैं।