दो शब्दों, वाक्याँशों अथवा वाक्यों को जोड़ने का कार्य करने वाले अव्यय को भाषा में समुच्चयबोधक अव्यय कहा जाता है। जैसे –
- राम और शाम आपस में बातें कर रहे हैं।
- सीता की रुमाल मैली है इस लिये वह उसे धो रही है।
पहले वाक्य में और राम व शाम को, दूसरे वाक्य में इस लिये दो वाक्यों को जोड़ रहा है।
समुच्चयबोधक अव्यय (Kinds of Conjunction)
अर्थ के आधार पर समुच्चयबोधक अव्यय के आठ भेद पाये जाते हैं –
- संयोजक – जो समुच्चयबोधक अव्यय दो को इकट्ठा करे उसे संयोजक कहा जाता है। और, तथा, एवं। जैसे – राम और सीता पाठशाला जा रहे हैं। रवी, गोविन्द एवं दास एक ही कक्षा में पढ़ते हैं।
- वियोजक – जिस समुच्चयबोधक अव्यय से अपने द्वारा जुड़ने वाले या एक का त्याग करने का आभास हो उसे वियोजक कहा जाता है। अथवा, या, न । जैसे – जती अथवा मती ने गेंद मारी है। न तुमने, न तुम्हारे भाई ने मेरी सहायता की।
- परिणामसूचक – जिस समुच्चयबोधक अव्यय से परिणाम सूचित हो, उसे परिणामसूचक कहा जाता है। इसी लिये, अत:, अतएव। जैसे – तुम मेरी सहायता करोगे, इसी लिये मैं आपके पास आया हूँ। मैं अंग्रेज़ी में दुर्बल हुँ, अत: आप मेरी सहायता करें।
- कारणसूचक – इस समुच्चयबोधक अव्यय से कारण का बोध होता है। क्योंकि, इस कारण, इस लिये कि । जैसे – तुम पर कोई भरोसा नहीं करता, कयोंकि तुम सत्य नहीं बोलते। वह मुझे पसन्द है इस लिये कि वह सुन्दर है।
- उद्देश्यवाचक – जो उद्देश्य को प्रकट करता हो, उसे उद्देश्यवाचक कहा जाता है। ताकि, कि, जिससे। जैसे – वह मेरे पास आया था ताकि सहायता माँग सके। श्रेष्ठ कार्य करो जिससे माता पिता गर्व कर सकें।
- विरोधवाचक – जो अव्यय विरोध भाव को प्रकट करे । पर, किन्तु, लेकिन। जैसे – पिता ने उसे रोका था पर वह नहीं रुका। मोहन पाठशाला गया था लेकिन पहुँचा नहीं।
- सङ्केतसूचक – जिस समुच्चयबोधक अव्यय में सङ्केत का भाव प्रकट हो, उसे सङ्केतसूचक कहा जाता है। तो, तथापि । जैसे – पढ़ना है तो स्कूल जाओ । यद्दपि वह मेहनती है तथापि उसे सफलता नहीं मिलती।
- स्वरूपवाचक – जिस समुच्चयबोधक अव्यय से स्पष्टीकरण प्रकट होता हो उसे स्वरूपवाचक कहा जाता है। जैसे, अर्थात, मानो । जैसे – वह इस तरह भाग रहा है जैसे उसने ही चोरी की हो।