भाषा (Language)
वह साधन जिस द्वारा हम अपने मन के भाव प्रकट कर सकते हैं, उसे भाषा कहते हैं।
इस के तीन रूप हैं –
- मौखिक भाषा (Language of Speech) – मन के भावों को जब बोल कर प्रकट किया जाये तो उसे मौखिक भाषा कहते हैं।
दिनभर में जो भी हम बोलते हैं वह मौखिक भाषा ही होती है।
- लिखित भाषा (Language in Print) – मन के भावों को जब लिखकर प्रकट किया जाये तो उसे लिखित भाषा कहते हैं।
पत्र, समाचार-पत्र और पुस्तक में पढ़ने का रूप लिखित भाषा ही है।
- 3. सांकेतिक भाषा (Language of Signs) – मन के भावों को जब संकेतों के दूारा प्रकट किया जाये तो उसे सांकेतिक भाषा कहते हैं।
मूक (Deaf) व्यकित दूारा सांकेतिक भाषा ही तो प्रयोग में लाई जाती है।
लिपि (Script)
बोलते समय मूँह से जो ध्वनि निकलती है उसको लिखने के लिए कुछ चिह्न बनाये गये हैं। चिह्नों के इस समूह को वर्ण कहा जाता है। इनको लिखने के ढ़ङग को हम लिपि कहते हैं। हिन्दी तथा संस्कृत भाषा के लिए देवनागरी (Devnagri) लिपि लिखी जाती है।
व्याकरण (Grammar)
वह विशिष्ट ज्ञान जो ठीक ठीक बोलने और लिखने का बोध कराता है उसे व्याकरण कहते हैं।
व्याकरण के चार अङ्ग होते हैं –
- वर्ण-विचार – वर्णों को मिलाकर ही प्रत्येक शब्द बनता है। शब्द-निर्माण का अध्ययन ही वर्णों के आकार, उच्चारण और उनके मेल से होता है।
- शब्द-विचार – कई तत्त्वों को मिलाकर ही भाषा का शब्द-भण्डार बनता है। शब्दों का बनना, विकास, आगमन और अर्थ का अध्ययन शब्द-विचार के अन्तर्गत आता है।
- रूप- विचार – शब्द का वाक्य में प्रयुक्त होना ही उसका रूप या पद कहलाता है। रूप-परिवर्तन, उनकी रचना और भेद वा उनके कार्य का अध्ययन इसके अधीन ही है।
- वाक्य-विचार – वाक्य के भेद, उसके गठन और पदों के पारस्परिक संबन्धों का अध्ययन वाक्य-विचार के अधीन ही है।