किसी भी भाषा में प्रयोग किये जाने वाले सभी शब्दों के समूह को उस भाषा का शब्द-भण्डार कहा जाता है।
हिन्दी के शब्द-भंडार के स्त्रोत का आधार चार प्रकार से माना जाता है-
- संस्कृत – मूल रूप (तत्सम शब्द)
- संस्कृत – बदला रूप (तद्भव शब्द)
- स्वदेशीय मूल (देशज शब्द)
- विदेशी शब्द
तत्सम शब्द– जो शब्द संस्कृत से सीधे मूल रूप में ही हिन्दी में प्रयोग किये जाते हैं वह तत्सम शब्द कहलाते हैं। जैसे-अग्नि, मुख, ज्ञान, दीर्घ, अपेक्षा आदि।
तद्भव शब्द – जो शब्द संस्कृत से हिन्दी में अपना मूल रूप बदल कर प्रयोग किये जाते हैं उन्हें तद्भव शब्द कहते हैं। जैसे-
तद्भव | तत्सम |
आँसू | अश्रु |
घर | गृह |
नाच | नृत्य |
सात | सप्त |
कान | कर्ण |
देशज शब्द – जो शब्द न संस्कृत से न विदेश से आये हों, उनकी उत्पत्ति का पता न चले तो उन्हें देशज शब्द कहा जाता है। जैसे- खटपट, रूठना, लड़का, चुटकी, भिण्डी आदि
विदेशी शब्द – जो शब्द विदेशी भाषाओं से हिन्दी में आये हैं उन्हें दो वर्गों में बाँटा जा सकता है –
(क) अरबी, फारसी और तुर्की भाषाओं से आये शब्द – जैसे अदालत, इरादा, ख़त, कानून, सूरत आदि
(ख) अंग्रेजी और अन्य यूरोपीय भाषाओं से आए हुए शब्द – जैसे अलमारी, केक, नर्स, फ़ाइल, बिस्कुट आदि