समास— दो शब्दों के मेल से बने शब्द को समास कहते हैं।
जैसे – हिमकण का अर्थ है हिम के कण
समास-विग्रह—सभी पदों को अलग-अलग करने की विधि को समास-विग्रह कहा जाता है।
जैसे – पेटदर्द = पेट में दर्द
जीवन-स्वामी = जीवन का स्वामी
भेद — समास के छे (Six) भेद बताये जाते हैं ।
- अव्ययीभाव समास
- तत्पुरुष समास
- कर्मधारय समास
- द्विगु समास
- बहुब्रीहि समास
- द्ंवद्व समास
अव्ययीभाव समास – पहला पद अव्यय और दूसरा पद संज्ञा हो तो समास होने पर दोनो पद अव्यय हो जाते हैं।
जैसे – प्रतिदिन, एकाएक आदि
तत्पुरुष समास – इसका पहला पद विशेषण का और दूसरा पद प्रधान होता है। इसमें सभी छह (Six) कारकों की विभक्तियों – को, से, के लिये, का, की, के, में पर, का लोप हो जाता है।
तत्पुरुष समास भी छह (Six) प्रकार का होता है-
- कर्म तत्पुरुष—इसमें कर्म कारक के चिह्न को का लोप हो जाता है।
जैसे— गगन को चूमनेवाला – गगनचुंबी,
परलोक को जाना परलोकगमन
- करण तत्पुरुष—इसमें करण कारक के चिह्न से, के द्वारा का लोप हो जाता है।
जैसे— रस से युक्त – रसयुक्त,
गुण से हीन – गुणहीन
- संप्रदान तत्पुरुष—इसमें संप्रदान कारक के चिह्न के लिए का लोप हो जाता है।
जैसे— देश के लिये भक्ति – देशभक्ति
प्रकाश के लिये किरण – प्रकाश-किरण
- अपादान तत्पुरुष—इसमें अपादान कारक के चिह्न से का लोप हो जाता है।
जैसे—धर्म से विमुख – धर्मविमुख
देश से निकालना – देशनिकाला
- संबन्ध तत्पुरुष—इसमें संबन्ध कारक के चिह्न का, के, की का लोप हो जाता है।
जैसे—माता का भक्त – मातृभक्त
सेना का पति – सेनापति
- अधिकरण तत्पुरूष—इसमें अधिकरण कारक के चिह्न में पर का लोप हो जाता है।
जैसे—अपने पर बीती हुई – आपबीती
रस में लीन – रसलीन
कर्मधारय समास – इसमें पहला पद विशेषण और दूसरा पद विशेष्य होता है।
जैसे—नीलकमल, सगुण
द्विगु समास— इसमें पहला पद सङ्ख्यावाची और दूसरा संज्ञा का होता है।
जैसे– त्रिकोण, नवग्रह
बहुब्रीहि समास — इसके दोनों पदों में से कोई भी पद प्रधान नहीं होता, अपितु कोई अन्य ही होता है।
जैसे — चतुरानन – चार मुखवाला अर्थात् ब्रह्मा
दशानन – दस मुखवाला अर्थात् रावण
द्वंद्व समास — इसमें दोनों पदों में और शब्द का लोप हो जाता है।
जैसे—माता और पिता – माता-पिता
अन्न और जल – अन्न-जल