कोई था जो रोहतक से चलकर रूह तक आता था
अब तो जलने और जलाने के समाचार ही आते हैं।
वो बातें किया करता था मीलों साथ चलने की
अब हर मोड़ बन्द है, पक्षी उड़ने से घबराते हैं।
जिससे बात करके सीने में जान आ जाती थी
अब वो नहीं पत्रकार ही वहाँ की व्यथा सुनाते हैं।
वो जब दूर गया तो असहनीय पीड़ा हुई थी
अब तो लोग मरने के बाद ही सङ्खया बताते हैं।
क्यों अभद्र दृश्य का क्रीड़ास्थल बना दिया उसे
जिसके कणों में इतिहास के स्वर गुनगुनाते हैं।
कवि आतुर है प्रेम के वो शब्द सुनने को
जो वहीं रोहतक से चलकर रूह तक आते हैं।
