शैलजा अब वयस्क अवस्था में आ चुकी थी तथा अपनी व्यवसायिक पढ़ाई को आरम्भ करने कोई नौकरी करने की सोचती थी। उसके मन में बहुत से भाव थे तथा वो ऐसा कोई कार्य चुनना चाहती थी जो कि बहुत ही अच्छा हो तथा जिससे उसका बहुत ही प्रभाव बनें। वो जहाँ भी जाती यह देखा करती थी कि कोई भी किसी भी कार्य में रत हो तो वह कैसा व्यवहार करता या करती है तथा क्या वो अपने कार्य से प्रसन्न व संतुष्ट है या नहीं। उसको लगता था कि अच्छा पद पाने वाले ही प्रसन्न होते हैं, सामान्य कार्यपद पाने वाले अधिकतर अप्रसन्न ही रहते हैं।
एक बार वो अपने चाचा जी के साथ बेंगलूरु नगर घूमने गई। उसे घूमना बहुत अच्छा लगता था क्योंकि उसका मानना था कि यात्रा से मनुष्य को जीवन की कठिनाईयों का ज्ञान होता है तथा जीवन के भिन्न-भिन्न अंगों से भी सामना होता है। तथा भारत जैसे विविधता से भरपूर देश में तो यात्रा बहुत ही ज्ञानवर्धक तथा अनुभव देने वाली होती है।
बेंगलूरु में शैलजा ने बहुत से स्थानों का भ्रमण किया जिसमें चिड़ियाघर, कुछ पुरानी ईमारतें तथा पार्क भी सम्मिलित थे। वापिस आते समय उसके चाचा जी उसे विमानपत्तन के प्रतीक्षालय (लाञ्ज) में ले कर गये। उनके पास एक बैंक का क्रैडिट कॉर्ड था जिस पर प्रतीक्षालय में निःशुल्क जाने की सुविधा थी। उसे प्रतीक्षालय में जा कर बहुत अच्छा लगा। उसने देखा कैसे बहुत से लोग वहाँ पर अपने कम्पयूटरों पर काम कर रहे थे तथा विभिन्न प्रकार का खाना खा रहे थे।
उसे वह वातावरण बहुत ही अच्छा लग रहा था। वह सोच रही थी कि क्यों ना वह विमानपत्तन पर ही कोई नौकरी क्यों ना कर ले। सभी जगह पर सफाई है और लोग बहुत ही सभ्य दिखते हैं।
थोड़ी देर बाद वह शौचालय का प्रयोग करने गई। उसने देखा कि वहाँ पर एक सफाई कर्मचारी है जो ध्यान रख रही थी कि कोई स्थान गंदा ना हो, पानी सही ढ़ंग से नलों में आ रहा हो, तथा यदि किसी को कोई सहायता चाहिये तो वो तुरंत उसे पूरा कर रही थी। शैलजा ने यह भी देखा कि वह स्त्री ऐसे स्थान पर काम कर भी सब से स्मित भाव से बात कर रही थी जहाँ पर प्रत्येक क्षण उसे दुर्गन्ध तथा मल का ही सामना करना पड़ता था।
इस बात का शौलजा के मन पर बहुत प्रभाव पड़ा। उसने आ कर अपने चाचा को सारी बात बताई तथा बोली कि इसका अर्थ कार्य में प्रसन्नता नहीं होती–प्रसन्नता का मूल तो किसी भी व्यक्ति के मन में ही होता है। कार्य कोई भी हो, यदि आप उसे मन से करेंगे तो आप प्रसन्न रहेंगे अन्यथा बहुत से ऐसे लोग भी हैं जो उच्च पदों पर काम करते हुये भी निराश रहते हैं तथा उस उच्च पद का आनन्द नहीं ले पाते।