हिन्दी कहानी–परिश्रम तथा प्रोत्साहन
यह कहानी एक ऐसे बच्चे की है जो आठवीं कक्षा का छात्र था। उसका नाम ऋषि था। वो बैडमिन्टन खेला करता था तथा पाठशाला जाने के उपरान्त बैटमिन्टन के एक आभ्यंतरिक (indoor) कोर्ट में प्रतिदिन अभ्यास के लिये जाया करता था।
वो एक बहुत अच्छा खिलाड़ी तो नहीं था परन्तु वो बड़ी लगन से अभ्यास किया करता था। शारीरिक रूप से भी वो बहुत बलवान नहीं था तथा शीघ्र ही थक जाता था जिस कारण वो अन्य बच्चों से खेल में पराजित हो जाता था। तब भी उसे विश्वास था कि अगर वो और अभ्यास तथा परिश्रम करेगा तो वो अच्छा खिलाड़ी बन जायेगा इस लिये वो हतोत्साहित नहीं होता था।
ऐसे ही अभ्यास करते हुये कुछ मास बीत गये। नगर की सभी पाठशालाओं की बैडमिन्टन प्रतियोगिता पास आ रही थी। उसने अपने दादा जी को बताया कि वो प्रतियोगिता में भाग लेने वाला है। उसका अपने दादा जी से बहुत लगाव था। उसके दादा जी ने उसे बड़े स्नेह से उसे आशीर्वाद दिया तथा साहस के साथ खेलने को कहा। वो मन ही मन बहुत प्रसन्न था तथा सोच रहा था कि कदाचित वो दादा जी को ये शुभ समाचार भी दे पाये कि वो प्रतियोगिता जीत गया था। एक मैच भी जीत जाये तो भी कुछ कम ना होगा।
कुछ दिन और बीते तथा प्रतियोगिता का समय आ गया। ऋषि कोर्ट में पहुँच चुका था तथा अपने मैच की प्रतीक्षा कर रहा था। उसका मैच किसी अन्य पाठशाला के सबसे अच्छे खिलाड़ी के साथ था। वो मन-ही-मन सोच रहा था कि वो मैच जीत नहीं पायेगा। पर उसे ये ज्ञात था कि वो अच्छा खेलेगा तथा सरलता से पराजित नहीं होगा। जो भी, उसने सोचा, मुझे अच्छा खेलना है।
मैच आरम्भ हो गया। कुछ अङ्क पीछे चल रहा था ऋषि कि तभी उसने देखा उसके दादा जी पगड़ी पहने, धोती डाले तथा अपनी छड़ी उठाये कोर्ट में आ गये थे। वो उसका प्रोत्साहन करने आये थे परन्तु उन्होनें ऋषि को पहले नहीं बताया कि वो आयेंगे।
ऋषि का मन हर्षोल्लासित हो गया। वो अपने दादा जी के सामने अौर भी अच्छा खेलना चाहता था। उसने मन-ही-मन अपने दादा जी को प्रणाम किया तथा खेल की ओर ध्यन लगा दिया। जो अङ्क वो सरलता से विपक्षी खिलाड़ी को दे रहा था अब वो पूरे तन-मन से अर्जित करने में लग गया। देखते ही देखते मैच का दृश्य परिवर्तित हो गया तथा ऋषि आगे निकल गया। वो और उत्साह से खेलने लगा–उसके मन में अब जीतने की इच्छा जागने लगी। वो चाहता था कि वो अपने दादा जी के समक्ष एक विजेता बन के उतरे।
बस देखते ही देखते मैच समाप्त हो गया। ऋषि ने विपक्षी खिलाड़ी को हरा दिया था। सारा कोर्ट तालियों से गूँज रहा था। उसके मित्र भी आश्चर्यचकित हो गये थे। उसने विपक्षी खिलाड़ी से हाथ मिलाया, रैफ़री को प्रणाम किया तथा सीधे अपने दादा जी के पाँव छूने पहुँच गया। उसके दादा जी ने उसे झट से गले लगा लिया तथा उसकी पीठ थप-थपायी।
ऋषि का मन भर गया था तथा उसकी आँखों में पानी भी आ गया था जबकि उसके मुख पर प्रसन्नता बिखर रही थी। उसका सपना पूरा हो गया था। उसके परिश्रम तथा लगन के परिणाम से उसने अपने से अच्छे खिलाड़ी को हरा दिया था।
शिक्षा: सच्ची लगन तथा उचित प्रोत्साहन से मनुष्य सब कुछ प्राप्त कर सकता है।